आवाज़ जब लगाई जाये तो , तो फिर सुनी जाये . जिस बात के लिए आवाज़ लगाए जाये , उसी का संदर्भ लिया जाये . महात्मा गाँधी के सहादत दिवस के दुसरे दिन जब हम एक साथ बात कर रहे थे --- तब कई लोगों ने बात को कई - कई बार मुद्दों को बदलने की कोशिश की . मुद्दा ये की कल एक अध्यापक को निकाले जाने के मसले को लेकर हम बात कर रहे थे , और लोग अपने कंप्यूटर की बात करने लगे की वो कैसे काम करता है .
दरअसल मामला उम्मीद को नाउम्मीद में बदल देने की साजिश का है . जब भी कोई उम्मीद की जाती है या बनाई जाती है -- तमाम विरोधी हवाएं उसे नाउम्मीद की तरफ ले जाने की कवायद शुरु कर देती है . पिछले दिनों हमारे विश्वविद्यालय में कुछ इसी तरह की उम्मीदी और नाउम्मीदी की बात शुरु हो गई थी .
सम्झुता परस्त लोगों के खिलाफ हम एक मुहीम चलायें .
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