Sunday, January 31, 2010

उम्मीद को नाउम्मीद में बदलने की साजिश

आवाज़ जब लगाई जाये तो , तो फिर सुनी  जाये . जिस बात के लिए आवाज़ लगाए जाये , उसी का संदर्भ लिया जाये . महात्मा गाँधी के सहादत दिवस के दुसरे दिन जब हम एक साथ बात  कर रहे थे --- तब कई लोगों ने बात को कई -  कई बार मुद्दों को बदलने की कोशिश की .  मुद्दा ये की कल एक अध्यापक को निकाले जाने के मसले को लेकर हम बात कर रहे थे , और लोग अपने कंप्यूटर की बात करने लगे की वो कैसे काम करता है .
दरअसल मामला उम्मीद को नाउम्मीद में बदल देने की साजिश  का है . जब भी कोई उम्मीद की जाती है या बनाई जाती है -- तमाम विरोधी हवाएं उसे नाउम्मीद की तरफ ले जाने की कवायद शुरु कर देती है . पिछले दिनों हमारे विश्वविद्यालय में कुछ इसी तरह की उम्मीदी और नाउम्मीदी  की बात शुरु हो गई थी .
सम्झुता  परस्त लोगों के खिलाफ हम एक मुहीम चलायें .

Thursday, January 28, 2010

इमानदार हैं तो सावधान रहिये

यदि आप इमानदार हैं तो सावधान रहिये , आपकी इमानदारी को शाजिशन बईमानी में बदला जा सकता है . आपके चारो तरफ के लोग आपके इरादों , मंतव्यों को तोड़ने  की हर संभव कोशिश में अपना योगदान देना चाहेगा .
और हाँ - अगर आप किसी सत्ता के विरोधी हैं , और विरोध का कोई इमानदार कारण है , तो ज्यादा  सावधान रहने की जरूरत है .  राष्ट्र- राज्य के भीतर रहकर विरोध करना आपने आप में एक बहादुरी है . लेकिन आपको यह देखना होगा की राष्ट्र - राज्य आपके इस  विरोध को किस तरह से लेता है. आपके इस विरोध में और कितने लोग साथ हैं , ये बहुत मायने रखता है ---- "एकला चलो" के नारे को याद करते हुए यह भी याद रखना होगा की  "अकेला चना भाडं नहीं फोड़ता " .
आजकल एक इमानदार आदमी रोज मेरे इर्द- गिर्द घूमता है , परेशां रहता है ---- असल में वो कुछ अच्छा करना चाहता है .
आपसे उसके समर्थन में आने की अपील करता हूँ .

Sunday, January 24, 2010

सही और सरल आदमी की परेशानी

विश्वविद्यालय  को क्या बहुरास्ट्रीय कंपनी होना चाहिए. शिक्षा संस्थान  में पसरते हुए गैर जवाबदेही बाले माहौल  में यह  बहस शुरु हो चुका है .
कृपापात्र  लोगों की काहिली और संष्ठानो से उपजे भरष्ट  आचरणों ने एक ऐसे समय का निर्माण किया है जहाँ सही और सरल लोगों के लिए कोई जगह नहीं बची है .
यह खबर गर्म है की ऐसे सही और सरल लोगों को काहिल लोगों द्वारा परेशां करने की दुरभिसंधि रची जा रही है.
बहुत जल्द ही उसके परिणाम देखने  को मिल सकते हैं.
समय पर काम को खतम करने बाले लोग मुर्ख होगें और परेशां होगें.वे  सता की  कुर्सी के इर्द - गिर्द , रहने वाले चापलूस के सामने निहायत ही बौने  और बेकार साबित होगें .
आएये चापलूसी , सत्ता की दलाली करने बाले के विरुद्ध एक जनमत तैयार  करें.

Thursday, January 21, 2010

kitne anjan bante hain log

आज सुबह हैती के भूकंप , अफगानिस्तान पर हमलों के साथ अपने पड़ोस में हुए स्त्री - शोषण के मुद्दों पर बात कर रहा था , हैरानी है की लोग एस सबसे अंजन बने रहना चाहते हैं, जानकर भी वे ऐसे रहना चाहते हैं की जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो . गोया की ये सब उनके लिए कोई समस्या नहीं है , उनके घर जब तक ठीक है , सब ठीक है . बर्तोल्त ब्रेख्त  की कविता आज बार बार इन संदर्भों में याद आ रही है . ये सब लोग हमरे समय के बुद्धिजीवी है , जो अपने भाषण में , जो अपने लेखन में लोकतान्त्रिक है .
आपके आस - पास वो चम्गाद्रों  की तरह हमेशा लटके होते हैं ----- उनको पहचानिए , उनकी पोशाकें साफ़-सुथरी हुआ करती हैं. मेरे आस - पास तो हैं , उनकी पहचान तो हो गई है --- उनको ठीक से,  ठीक करना होगा .

Wednesday, January 20, 2010

मेरा विदर्भ , तुम्हारा विदर्भ - सबका विदर्भ

विदर्भ का इतिहास बहुत पुराना है.  मैं लगभग सात बरस   से यहाँ  हूँ . यह एक शांत इलाका है .
महाराष्ट्र  कहते ही हम केवल  मुंबई या फिर पूना को याद करते हैं , कम से कम विदर्भ  का तो कोई इलाका याद नहीं ही आता है . शिक्षा , स्वास्थ्य , और गरीबी से झुझता विदर्भ कई बर्ष से संगर्ष कर रहा है. अलग राज्य की मांग विदर्भ की एक जरूरी मांग है . कल सम्पूर्ण विदर्भ बंद रहा है.विदर्भ के लिए आये कुछ किया जाये .

skarlet

उपन्यास पर जो पोस्ट लिखा है , उसे मेरे साथी राकेश मिश्र ने लिखा है . जनबरी की गुनगुनी ठण्ड से वे अभी अभी जमशेदपुर से लौटे हैं -- उपन्यास के स्कारलेट की चर्चा उन्होंने की और मेरे आग्रह पर एक छोटा पोस्ट लिखा है . यह न भूलिए की राकेश मिश्र कहानीकार हैं और बाकि धुआं रहने दिया संग्रह के लेखक  .

एक उपन्यास के बारे में..

गोन विथ द विंड मार्गरेट मिशेल का उपन्यास है जो अमेरिका के गृह युद्ध के बीच एक मध्यवर्गीय  रूमानी दृष्टि से लिखा गया है.  किताब के ख़त्म होते होते हम पूरी तरह से नायिका स्कारलेट ओ हारा के प्रभाव में आ जाते हैं और उस से प्यार करने लग जाते हैं . राजनैतिक असहमतियों के वावजूद एक जब्बरदस्त किताब . स्त्री विमर्श वालों के लिए निहायत जरूरी . हैरत है की मिशेल ने फिर कोई उपन्यास नहीं लिखा.
 

Monday, January 18, 2010

क्या हैती पर अमेरिका कब्ज़ा करना चाहता है ?

रोटी के इंतजार में एक देश --- मेरे समय का देश है । अमेरिका की नज़र उस देश पर है । गरीबी और जहालत में ध्यान रखना अच्छे पडोसी की निशानी है । लेकिन अगर पडोसी की नज़र गरीबी में मदद करने के बहाने कब्ज़ा करना हो तो यह बात खतरनाक है । वेनेजुअला के राष्ट्रपति का यही आरोप है /
हैती की ८० फीसदी जनसँख्या गरीबी रेखा के नीचे है , हिंसा , व्र्रश्ताचार से परेशां हैती अब प्राकृतिक हादसा से परेशां है ।
हमारे आस पास कितनी दुनिया है --- हैती की दुनिया और २१ सदी की सबसे विकसित दुनिया अमेरिका । समाजवाद एक नारे के रूप में कब तक रहेगा ?

Sunday, January 17, 2010

स्त्री के बारे ---------------- ?

भारत में कई विस्वविद्यालय है , मैं जहाँ हूँ वह सबसे अलग है । अलग कैसे है हमारे विस्वविद्यालय का एक्ट आप चाहें तो देख सकते हैं ।
स्त्री को लेकर हमारा विस्वविद्यालय अलग तरह से सोचता है । उस सोच के बारे में अलग से बताने की गुंजाईश है। अभी इतना भर की -------- स्त्री के बारे में विश्वविद्यालय बहुत ठीक नहीं सोचता ।

एक कामरेड का विदा होना

अभी अभी जब हमसे एक कामरेड विदा हो रहा है , वह भी तब जब कामरेड होना इस पूंजी समय में मुस्किल होता जा रहा है --- बेहद दुखद है । हमें जोय्ती दा की बहुत याद आ रही है ।

Thursday, January 14, 2010

एक बात जो काम की है

रोज सोचता हूँ , गुनता हूँ --- कोई एक बात
सुबह उसको दुहराता हूँ
आज उसी को आपके सामने लाना चाहता हूँ
। दुनिया में कितनी चीजे हैं कहने को ---- कह पता हूँ कोई एक