आज सुबह हैती के भूकंप , अफगानिस्तान पर हमलों के साथ अपने पड़ोस में हुए स्त्री - शोषण के मुद्दों पर बात कर रहा था , हैरानी है की लोग एस सबसे अंजन बने रहना चाहते हैं, जानकर भी वे ऐसे रहना चाहते हैं की जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो . गोया की ये सब उनके लिए कोई समस्या नहीं है , उनके घर जब तक ठीक है , सब ठीक है . बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता आज बार बार इन संदर्भों में याद आ रही है . ये सब लोग हमरे समय के बुद्धिजीवी है , जो अपने भाषण में , जो अपने लेखन में लोकतान्त्रिक है .
आपके आस - पास वो चम्गाद्रों की तरह हमेशा लटके होते हैं ----- उनको पहचानिए , उनकी पोशाकें साफ़-सुथरी हुआ करती हैं. मेरे आस - पास तो हैं , उनकी पहचान तो हो गई है --- उनको ठीक से, ठीक करना होगा .
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