Saturday, July 24, 2010

मेरी दुनिया मेरे आगे -------

"पारम्परिक समाजवाद को ----- एक ऐसी अर्थ-वयवस्था जो आवश्क रूप से सामाजिक स्वामित्व और उत्पादन , वितरण और विनिमय के आधारों पर ही खरी हो --- सोवियत प्रयोग कि असफलता कितना संदेहास्पद बनती है , यह दूसरा बड़ा सवाल है . सिधांत एस तरह कि योजना तर्कसंगत है , एस बात को तो अर्थशास्त्रियों में प्रथम विश्वयुद्ध के पहले से स्वीकार कर लिया था , लेकिन विचित्र बात यह है कि इस  सिधांत का विकास समाजवादियों ने नहीं बल्कि उन शुद्ध अर्थशास्त्रियों ने किया था जो समाजवादी नहीं थे . इसमें व्यावहारिक रूप से कुछ कठिनायाँ , विशेस रूप से नौकरशाही के द्वारा आने वाली थी, यह बहुत साफ था .  ------- "

एरिक होब्स्बोम कि किताब से

Sunday, July 4, 2010

लेकिन मेरा घर -----

 कलह और सुलह के बीच एक बात मुकमल तौर पर जाहिर थी कि राजेन्द्र यादव की तस्वीर अपना ऐसा महत्व बनाये हुए है , जिससे डॉक्टर साहब कि पत्नी का रचनातमक लगाव है .लगता है पति कि जमींन छेंक रही है तस्वीर --- ऐसा क्या है एस फोटो में ? सक्रियता कि पुकार , गतिशीलता का जज्बा और मेरे पति को घर  से बहार निकलनेवाली स्त्रियाँ पसंद नहीं .  
                                                                                                        गुडिया  भीतर   गुडिया