Wednesday, February 24, 2010

मुझे मेरी अंगूठी लौटा दो .

देश के बदलते हुए सरोकारों  में अंगूठी कि बात एक बेकार बात है .
लेकिन जब अंगूठी किसी आस्था और विश्वाश  के साथ जुडा हो , और किसी पुरानी याद कि तरह जिस्म में पबस्त हो जाये तब अंगूठी कि बात एक जरूरी बात हो जाती है .
बजट के दौरान अंगूठी कि बात --- हमे हो सकता है थोडा भटकाए लेकिन यह भटकाव मेरे इर्द - गिर्द के लिए जरूरी है .
आज दोस्तों से बात होते होते ----- किसी पत्रिका  के आगामी अंकों के विशेषांक को लेकर होने वाली तयारी को लेकर होने लगी कि ---- अगला अंक पत्रिका का बेवफाई पर निकल रहा है  .
सोचना चाहिए हमे कि उर्दू ग़ज़लों कि बेवफाई जब हिंदी कहानियों  में आयेगी तो क्या होगा.
कितने लोग अपनी अंगूठी मागने के लिए कई -  कई किलोमीटर कि यात्रा करेगें .

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