न्यायालय का एक दिन , मेरे लिए इतनी परेशानी का रहा कि अपने गावों के अनाम लोगों कि याद करा गया , जो सतु , चबेना बंधकर दिन - दिन भर न्यायालय कि चक्कर लगाते अपनी जिन्दगी कि शाम कर देते हैं .
अपने गावं के अनाम लोगों के नाम एक चिट्ठी -------- कोई एक नाम के साथ
प्रिय रामबिरछा ,
उम्मीद है तुम्हारी बेटी जिसका नाम मैं भूल गया हूँ ( भूल कि माफ़ी मागंता हूँ ) अच्छी होगी . याद है तुम्हे , जब तुम कई बरसों बाद मुझे गावं के किराने कि दुकान में मिले थे , मैं तुम्हे पहचान नहीं पाया था , और तुम लगातार मुझे देखते जा रहे थे . और जब तुमने बताया कि --- भूल गए बाबु मैंने आपको अपने कंधे पर घुमाया है . मैं घबरा गया था ये सुनकर , ग्लानी हुई , और लगभग हकलाते हुए मैंने तुमसे पूछा था ---- कैसे हैं रामबिरछ जी ? और फिर तुमने ढेरों बात बताई थी गावं के बारे में , सब मैं सुनता जा रहा था ----- और सोचता जा रहा था --- बेकार में मैं शहर में रहता हूँ ( क्यूँ ना गावं में दुबारा आया जाये ). मुझे याद आ रहा था कि जब मैं अपने पिता जी के साथ शहर आने के लिए अपने परिवार के साथ गावं से निकला था , तुम साथ - साथ स्टेशन तक आये थे , तुमने शराब पी रखी थी , माथे पर सामान रखे तुम लड़खड़ा रहे थे . पीता जी से नशे कि हालत में कई बात किये जा रहे थे , जो तुम होश में कभी नहीं कर सकते थे . वो सब बात मैं आज तुम्हे याद दिलाना चाहता हूँ , लेकिन वो सब मिलकर बताना चाहता हूँ ( नहीं जानता कि तुम आज जीवित हो या नहीं ) . तुमने उस दिन स्टेशन पर बताया था कि कैसे तुम आजकल एक केश में हर महीने कोर्ट जाते हो , कितना खर्चा हो जाता है , कैसे वो झूठा केश तुम्हे चैन से रहने नहीं देता , तुम कैसे भूखे पेट दिन - दिन भर कोर्ट में चक्कर लगाते रहते हो , और निराश होकर शाम होते घर पहुचते हो , किसी से कुछ कहने का मन नहीं करता है .
आज कई बरस के बाद रामबिरछा मेरा भी वही हाल है , तुमरे पास पैसे नहीं थे , झूठा केश था , सच कहूँ अगर तुम्हारे पास पैसे भी होते ना उस दिन तब भी तुम भूखे ही रहते , क्यूंकि कोई भी इमानदार आदमी कोर्ट में खाना खा ही नहीं सकता , जैसे कि मैं नहीं खा सका , पैसे होते हुए भी .
रामबिरछा मैं इस चिट्ठी को , बहुत भारी नहीं करना चाहता , बस इतना कि आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है , और याद इसलिए नहीं कि मैं बहुत तकलीफ महसुश कर रहा हूँ , बल्कि यह कि उस दिन मैं तुम्हारी तकलीफ क्यूँ नहीं जान सका . क्यूँ नहीं ?
तुम्हारा
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