Monday, August 26, 2013

एरिक जॉन अर्नेस्ट हाब्सबाम का जन्म ०९ जून १९१७ में सिकन्दरिया ( मिस्र ) में हुआ था . उनकी शिक्षा वियना , बर्लिन , लंदन और कैम्ब्रिज में हुई . हाब्सबाम ब्रिटिश अकादमी और अमरीकी अकादमी ऑफ आर्ट्स एंड साईंस के फेलो रहे थे . हाब्सबाम की  ‘दि एज ऑफ रिवोल्यूशन’ , ‘दि एज ऑफ कैपिटलिज्म’ , ‘दि एज ऑफ एम्पायर’ , ‘दि एज ऑफ एक्सट्रीम’ जैसी रचना इतिहास में मिल का पत्थर साबित हुई हैं .

इतिहास राष्ट्रवादी या नृजातीय या पुनरुत्थानवादी विचारधाराओं के लिए उसी तरह कच्चा माल होता है जैसे हेरोइन के नशेड़ियों के लिए अफीम | इन  विचारधाराओं के लिए शायद इतिहास सबसे जरूरी चीज होता है . अगर अतीत अनुकूल नहीं होता है तो उसे अपने अनुकूल गढ़ लिया जाता सकता है .
अतीत से वैधता मिलती है . वर्तमान में खुशी मनाने लायक तों कुछ है नहीं इसीलिए अतीत इसकी गौरवशाली पृष्ठभूमि बनाने के काम आता है .
हमारे अध्ययनों को उसी तरह बम के कारखानों में बदला जा सकता है जिस तरह आयरिश रिपब्लिकन आर्मी ( आई आर ए ) ने रासायनिक फर्टिलाइजर  को विस्फोटक में बदलना सीख लिया था .
अस्मिता की राजनीति के लिए मिथक और गढे. हुए झूठ जरूरी हैं . इन्हीं के आधारों पर आजकल लोगों के समूह मानव जातियों, धर्मों या अतीत अथवा वर्तमान राष्ट्रों की सीमाओं के अनुसार अपने आपको परिभाषित करते हैं .
अतीत तक वापसी किसी ऐसी चीज की ओर वापसी हो सकती है जो इतनी दूरदराज हो कि उसका पुनर्निर्माण करना पड़े | यानी कई सदियों तक विसरा दिये जाने के बाद शास्त्रीय पुरातनता का ‘पुनर्जन्म’ या पुनर्जागरण | पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी के बुद्धिजीवी उसे इसी रूप में देखते थे , या फिर ज्यादा संभावना है कि वह वापसी ऐसी चीज  की  ओर हो जो कभी थी ही नहीं लेकिन जिसका इजाद इसी मकसद के लिए किया गया है .
वर्तमान बिलकुल साफ़ है कि अतीत की कार्बन कॉपी नहीं है . हो भी नहीं सकता . यह किसी कार्यवाहीगत अर्थ में इसके आधार पर गढ़ी भी नहीं जा सकती. औधोगिकरण की शुरुआत के बाद से ही हर पीढ़ी अपने साथ जो लाती है उसकी अभिनवता उस समानता से कहीं ज्यादा होती है जो गुजरी पीढ़ी के साथ इस पीढ़ी की होती 

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