"पारम्परिक समाजवाद को ----- एक ऐसी अर्थ-वयवस्था जो आवश्क रूप से सामाजिक स्वामित्व और उत्पादन , वितरण और विनिमय के आधारों पर ही खरी हो --- सोवियत प्रयोग कि असफलता कितना संदेहास्पद बनती है , यह दूसरा बड़ा सवाल है . सिधांत एस तरह कि योजना तर्कसंगत है , एस बात को तो अर्थशास्त्रियों में प्रथम विश्वयुद्ध के पहले से स्वीकार कर लिया था , लेकिन विचित्र बात यह है कि इस सिधांत का विकास समाजवादियों ने नहीं बल्कि उन शुद्ध अर्थशास्त्रियों ने किया था जो समाजवादी नहीं थे . इसमें व्यावहारिक रूप से कुछ कठिनायाँ , विशेस रूप से नौकरशाही के द्वारा आने वाली थी, यह बहुत साफ था . ------- "
एरिक होब्स्बोम कि किताब से
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